जींद से सोनीपत के बीच अगस्त में चल सकती है देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन, प्लांट का 85% काम पूरा
हरियाणा के जींद में बन रहा हाइड्रोजन प्लांट लगभग तैयार है। अगस्त में यहां से भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन जींद से सोनीपत के बीच चलाई जा सकती है। जानिए कैसे यह ट्रेन डीजल से सस्ती, तेज़ और पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित होगी।

हरियाणा के जींद जिले में देश का पहला हाइड्रोजन गैस प्लांट तैयार होने की कगार पर है। यह प्लांट अगस्त तक पूरा हो सकता है, जिसके बाद भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन को जींद से सोनीपत के बीच ट्रायल के बाद शुरू किया जाएगा। हालांकि प्लांट का काम मई तक पूरा होना था, लेकिन अब तक इसका लगभग 85% हिस्सा ही बन पाया है।
करीब 118 करोड़ रुपये की लागत से रेलवे जंक्शन के पास 2000 मीटर एरिया में बन रहा यह प्लांट न सिर्फ टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी साबित होगा, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद है। हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें डीजल की जगह सिर्फ भाप और पानी छोड़ेंगी, जिससे प्रदूषण न के बराबर होगा।
डीजल के मुकाबले सस्ती और ज्यादा दूरी तय करने वाली ट्रेन
हाइड्रोजन ट्रेनें एक किलो हाइड्रोजन में करीब साढ़े चार लीटर डीजल जितनी दूरी तय कर सकेंगी। इन ट्रेनों का रखरखाव भी बेहद किफायती होगा। इलेक्ट्रिक ट्रेनों की तुलना में हाइड्रोजन ट्रेनें 10 गुना ज्यादा दूरी तय करने की क्षमता रखती हैं। प्रस्तावित ट्रेन 360 किलोग्राम हाइड्रोजन में लगभग 180 किलोमीटर तक चल सकेगी और इसमें दो पावर प्लांट भी होंगे।
भारत, हाइड्रोजन से ट्रेन चलाने वाला दुनिया का पांचवां देश बन जाएगा। इससे पहले फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन और चीन में इस तकनीक पर काम हो चुका है।
फिलहाल इस रूट पर सीएनजी ट्रेन, जल्दी होगी हाइड्रोजन ट्रेन की शुरुआत
जींद-सोनीपत रूट पर इस समय सीएनजी से चलने वाली ट्रेन ऑपरेट हो रही है। लेकिन अब हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन के आने के बाद संचालन खर्च और भी कम हो जाएगा। केंद्र सरकार की योजना है कि डीजल, सीएनजी और इलेक्ट्रिक की जगह अब कम लागत वाली हाइड्रोजन गैस को विकल्प के तौर पर अपनाया जाए।
चेन्नई में बन रही हाइड्रोजन ट्रेन को जल्द ही जींद लाया जाएगा। इसके बाद ट्रायल रन के जरिए इसे चेक किया जाएगा और फिर यात्रियों के लिए सेवा शुरू की जाएगी।
ट्रेन में होगा हाईब्रिड सिस्टम और तीन हजार किग्रा गैस का स्टोरेज
प्लांट में हाइड्रोजन गैस को जमीन के नीचे स्टोर करने की सुविधा तैयार की जा रही है, जिसमें करीब तीन हजार किलोग्राम गैस स्टोर हो सकेगी। ट्रेन को चलाने के लिए हर घंटे करीब 40,000 लीटर पानी की जरूरत होगी, जिसके लिए स्टेशन की छतों से पानी प्लांट तक लाया जाएगा।
यह हाइब्रिड ट्रेनें होंगी, जिनमें बैटरी और सुपर कैपेसिटर जैसे अक्षय ऊर्जा सिस्टम लगाए जाएंगे। डीजल की जगह इसमें फ्यूल सेल, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का प्रयोग होगा। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रासायनिक रिएक्शन से बनने वाली गर्मी से बिजली बनेगी, जिससे ट्रेन चलेगी। ट्रेन में न कोई धुआं होगा और न ही कोई तेज़ आवाज — सिर्फ भाप और पानी निकलेगा।
निर्माण में हो रही देरी, लेकिन तेजी से चल रहा काम
हालांकि इस प्रोजेक्ट की तय डेडलाइन 31 मार्च 2025 थी, लेकिन काम समय से पहले ही पूरा करने की तैयारी थी। रेलवे अधिकारियों ने डीआरएम को 20 मई तक हाइड्रोजन उत्पादन शुरू होने का भरोसा दिलाया था, जो अब तक नहीं हो सका। फिर भी काम अब तेजी से चल रहा है और अगस्त तक यह पूरा होने की उम्मीद है।
रेलवे के IOW (इंस्पेक्टर ऑफ वर्क्स) शैलेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, प्लांट की फाइनल स्थिति की जानकारी सिर्फ मुख्यालय से ही मिल सकती है।