किसान धान को छोड़कर मक्का, दलहन, तिलहन और सब्जियों की कर रहें खेती, हर साल हो रहा जबर्दस्त मुनाफा!
जिले के किसानों ने अब खेती का रास्ता बदल लिया है। जहां पहले गर्मियों में धान की फसल ही सबसे ज्यादा बोई जाती थी, अब वहां मक्का, दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती देखने को मिल रही है। बदलाव का ये कदम सिर्फ मुनाफे तक सीमित नहीं है, बल्कि जल संकट से जूझते इलाके में जल बचाने की दिशा में भी बड़ा योगदान दे रहा है।

कृषि विभाग और जिला प्रशासन की साझेदारी में चल रहे “जल रक्षा मिशन” का असर अब ज़मीन पर दिखने लगा है। किसानों को पानी की भारी खपत वाली धान की जगह कम पानी में फलने वाली फसलें उगाने के लिए न सिर्फ जागरूक किया गया, बल्कि कंपनियों के सहयोग से बीज और तकनीकी मदद भी दी गई। इस बदलाव से न केवल किसान खुश हैं, बल्कि जमीन और पानी भी राहत की सांस ले रहे हैं।
जिले में इस साल खेती की तस्वीर कुछ अलग ही नजर आ रही है। अब किसान परंपरागत धान की बजाय मक्का, दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण है – फसल चक्र में बदलाव और पानी की किल्लत। ग्रीष्मकाल में धान की फसल के लिए भारी मात्रा में पानी चाहिए होता है, जो अब पहले की तरह उपलब्ध नहीं है। कई क्षेत्रों में तो नलकूप भी सूख चुके हैं।
इस स्थिति को भांपते हुए कृषि विभाग ने किसानों को वैकल्पिक फसलों की ओर मोड़ने का बीड़ा उठाया। “जल रक्षा मिशन” के तहत जिला प्रशासन ने किसानों को जागरूक किया कि धान छोड़ो, मक्का पकाओ – मुनाफा भी मिलेगा और पानी भी बचेगा! और हुआ भी ऐसा ही।
इस पहल को कामयाब बनाने में निजी कंपनियों ने भी बड़ा योगदान दिया। खरीफ 2024 में राजाराम मेज प्रोडक्ट लिमिटेड ने 400 हेक्टेयर में मक्का बोने के लिए किसानों को बीज मुहैया कराया। वहीं, रबी 2024-25 में एबीस ने 290 किसानों को 290 एकड़ में और पॉपकॉर्न कंपनी ने 373 किसानों को 592 एकड़ में बीज देकर मक्का की खेती को बढ़ावा दिया। इससे साफ है कि अब मक्का न सिर्फ चटपटे स्नैक्स का हिस्सा है, बल्कि किसानों की जेब भरने का भी जरिया बन गया है।
खास बात ये है कि अब किसान भी समझ चुके हैं कि मक्का, तिलहन और दलहन जैसी फसलें कम पानी में अच्छी उपज देती हैं और बाजार में इनकी मांग भी बनी रहती है। इसके साथ ही सब्जियों की खेती से भी उन्हें तगड़ा फायदा मिल रहा है।