Black Garlic Farming : कम लागत में पाना चाहते हैं ज़्यादा मुनाफ़ा तो करें काले लहसुन की खेती
कभी लहसुन को सिर्फ खाने में तड़का लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब इसका नया रूप — ब्लैक गार्लिक यानी काला लहसुन — न केवल स्वाद के शौकीनों को लुभा रहा है, बल्कि किसानों के लिए भी मुनाफ़े का जबरदस्त जरिया बनता जा रहा है। खास बात ये है कि इसकी खेती महंगी भी नहीं है और प्रोसेसिंग के लिए हाई-टेक मशीनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। ऊपर से सेहत से जुड़ी खूबियों के चलते इसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है।

ब्लैक गार्लिक की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसका स्वाद न तो आम लहसुन की तरह तीखा होता है और न ही इसकी महक चुभने वाली होती है। उल्टा, इसका स्वाद मीठा, खट्टा और एक खास तरह का ‘उमामी’ फ्लेवर लिए होता है — कुछ-कुछ इमली या बाल्समिक विनेगर जैसा। इस अनोखे स्वाद और सेहतमंद गुणों के चलते यह आजकल शेफ, फूडीज़ और हेल्थ-लवर्स की पसंद बनता जा रहा है।
क्या है ब्लैक गार्लिक?
ब्लैक गार्लिक कोई अलग किस्म का लहसुन नहीं है, बल्कि वही आम लहसुन है जिसे खास तापमान और नमी में कुछ हफ्तों तक पकाकर ‘एज्ड’ किया जाता है। इस दौरान मेलियार्ड रिएक्शन नाम की एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, जिसमें लहसुन के अमीनो एसिड और शुगर आपस में मिलकर उसे काले रंग, नरम बनावट और मीठे स्वाद में बदल देते हैं। ये प्रक्रिया करीब 3 से 4 हफ्तों तक चलती है।
इसकी खासियत क्या है?
- महक नहीं होती: आम लहसुन की तीखी गंध से लोग अक्सर दूर भागते हैं, लेकिन काले लहसुन में ये दिक्कत नहीं होती।
- स्वाद में चटपटा ट्विस्ट: इसका स्वाद इतना खास होता है कि इसे डेज़र्ट तक में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सेहत का खज़ाना: ब्लैक गार्लिक में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा ज्यादा होती है। ये दिल की सेहत से लेकर ब्लड शुगर तक को कंट्रोल करने में मदद करता है। साथ ही, यह इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है।
कैसे बनता है ब्लैक गार्लिक?
इसकी प्रोसेसिंग बेहद आसान है। ताजा और एक जैसे साइज के लहसुन की कलियों को किसी फर्मेंटेशन चैंबर या घर में उपलब्ध चावल पकाने वाली मशीन, डिहाइड्रेटर या स्पेशल ब्लैक गार्लिक फर्मेंटर में रखा जाता है। मशीन नहीं है तो भी कोई दिक्कत नहीं — थोड़ी सी समझदारी और सही तापमान-नमी का ध्यान रखते हुए यह काम किया जा सकता है।
तकरीबन 60°C से 80°C तापमान और 70-80% नमी में 3 से 4 हफ्तों तक इसे फर्मेंट किया जाता है। इसके बाद इसे सुखाकर ठंडा किया जाता है और फिर एयरटाइट कंटेनर में पैक कर दिया जाता है। खास बात यह है कि काले लहसुन की शेल्फ लाइफ करीब एक साल तक होती है — यानी न खराब होता है, न सड़ता है।
सफेद vs काला लहसुन — कौन बेहतर?
जहां सफेद लहसुन सेहतमंद तो है, लेकिन ब्लैक गार्लिक से मुकाबला नहीं कर सकता। ब्लैक गार्लिक में एंटीऑक्सीडेंट अधिक होते हैं, यह पचने में आसान होता है और एसिडिटी जैसी दिक्कतें नहीं करता। साथ ही, इसका स्वाद और लंबी शेल्फ लाइफ इसे रेगुलर लहसुन से ज्यादा मूल्यवान बनाते हैं।
बाजार में ब्लैक गार्लिक की कीमत 1500 से 1700 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है, जो सामान्य लहसुन की तुलना में कई गुना ज्यादा है। यानी किसानों के लिए यह कम लागत में ज्यादा फायदा देने वाला सौदा है।
किसानों के लिए क्यों फायदेमंद है ये खेती?
- कम लागत, ज्यादा मुनाफ़ा: इसकी प्रोसेसिंग सस्ती मशीनों से भी की जा सकती है।
- छोटे किसानों के लिए बढ़िया ऑप्शन: छोटे बैच में भी प्रोसेसिंग की जा सकती है, जिससे सीमित संसाधनों वाले किसान भी शुरुआत कर सकते हैं।
- बढ़ती मांग: हेल्थ अवेयरनेस और फिटनेस ट्रेंड के चलते इसकी डिमांड घरेलू ही नहीं, इंटरनेशनल मार्केट में भी तेजी से बढ़ रही है।
- ऑर्गेनिक का प्लस पॉइंट: जैविक खेती से तैयार ब्लैक गार्लिक को प्रीमियम दाम मिलते हैं।
एक सुपरफूड, जो सेहत और कमाई दोनों दे
ब्लैक गार्लिक कोई फैशन या ट्रेंड नहीं, बल्कि एक सॉलिड सुपरफूड है। इसमें वो सारे गुण हैं जो आज के हेल्थ-कॉन्शियस ग्राहक ढूंढते हैं — लंबी शेल्फ लाइफ, शानदार स्वाद, और सेहत से भरपूर। और अगर बात करें किसानों की, तो उनके लिए यह कम लागत में बेहतरीन कमाई का जरिया है।