‘डांसिंग स्टोन’ से दुनियाभर में मशहूर हुआ हरियाणा का ये गांव, गिनीज बुक में दर्ज है नाम; जानिए क्या है इसकी खासियत
Dancing Stone of Haryana: चरखी दादरी का कलियाणा गांव बन रहा दुनियाभर की चर्चा का केंद्र, वजह है यहां मिलने वाला ‘हिलना पत्थर’

हरियाणा के चरखी दादरी जिले का छोटा सा गांव कलियाणा आज देश ही नहीं, विदेशों तक चर्चा में है। वजह है यहां की अरावली पहाड़ियों में मिलने वाला एक खास किस्म का पत्थर जिसे स्थानीय लोग ‘हिलना पत्थर’ कहते हैं। ये पत्थर रबड़ की तरह लचीला है और जब इसे छुआ जाता है या उस पर हल्का दबाव डाला जाता है, तो यह वास्तव में हिलता है। इसी खासियत ने इसे दुनियाभर में यूनिक बना दिया है।
गांव की अरावली पहाड़ी में मौजूद ये पत्थर भूगर्भीय दृष्टिकोण से भी काफी अहम माना जा रहा है। वैज्ञानिक इसे Flexible Sandstone कहते हैं और इसके बनने की प्रक्रिया और संरचना को लेकर रिसर्च कर रहे हैं। खास बात ये है कि इसी पत्थर को लेकर यह भी माना जा रहा है कि भविष्य में इसका इस्तेमाल Earthquake Resistant Buildings यानी भूकंप-रोधी इमारतों के निर्माण में किया जा सकता है।
गिनीज बुक में दर्ज है नाम, सरकार बना रही टूरिज़्म प्लान
कलियाणा गांव की ये खास धरोहर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में भी दर्ज हो चुकी है। इसे ‘डांसिंग स्टोन ऑफ हरियाणा’ (Dancing Stone of Haryana) के नाम से भी जाना जाता है। राज्य सरकार की ओर से इस पहाड़ी को एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन (Tourist Destination) बनाने की योजना पर काम हो रहा है।
फिलहाल इस इलाके की सुरक्षा को देखते हुए संबंधित सरकारी विभागों ने यहां आम लोगों के जाने पर कुछ हद तक रोक भी लगाई है। पहाड़ी में प्रवेश पर प्रतिबंध के बोर्ड लगाए गए हैं ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को नुकसान से बचाया जा सके। ग्रामीण भी इस काम में सरकार का साथ दे रहे हैं और अपने स्तर पर इस अनोखे पत्थर की सुरक्षा में जुटे हुए हैं।
देश-विदेश से देखने आते हैं लोग, वैज्ञानिक भी कर रहे स्टडी
चरखी दादरी जिला मुख्यालय से महज़ सात किलोमीटर दूर स्थित कलियाणा गांव की पहाड़ी में मौजूद इस लचीले पत्थर को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। Geology से जुड़े स्टूडेंट्स, प्रोफेसर और रिसर्चर्स भी इस जगह पर आकर अध्ययन करते हैं। हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रभास पांडे अपनी टीम के साथ यहां पहुंचे थे।
प्रो. पांडे का मानना है कि इस पत्थर की संरचना और गुणों पर रिसर्च करके इसे इंजीनियरिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर ये पत्थर वाकई भूकंप-रोधी निर्माण सामग्री के रूप में कारगर साबित होता है, तो भारत जैसे भूकंप-संवेदनशील देशों के लिए यह एक बड़ी कामयाबी होगी।
ग्रामीणों की भी खास पहल
गांव के बुज़ुर्ग और स्थानीय निवासी जैसे कि नरेंद्र राजपूत, बिजेंद्र सिंह, जयभगवान और पूर्व सरपंच नानकी देवी बताते हैं कि यह पत्थर गांव की पहचान बन चुका है। वे चाहते हैं कि इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा मिले और इस पर आधारित एक स्थायी पर्यटन स्थल तैयार किया जाए, जिससे गांव की अर्थव्यवस्था भी मज़बूत हो सके।
हाल ही में हरियाणा सरकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में इस पत्थर से जुड़े सवाल भी पूछे गए हैं, जिससे युवाओं में भी इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है। गांव के लोग अपने स्तर पर इस धरोहर को बचाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और सरकार से भी सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं।