कितनी EMI मिस होने पर होती है प्रॉपर्टी की नीलामी? जानिए बैंक की पूरी प्रक्रिया
लोन लेने के बाद कई बार ऐसा होता है कि किसी वजह से EMI समय पर नहीं भर पाना मुमकिन नहीं हो पाता। ऐसे में अगर EMI लगातार मिस होती रहे, तो बैंक लोनधारक को डिफॉल्टर...

लोन लेने के बाद कई बार ऐसा होता है कि किसी वजह से EMI समय पर नहीं भर पाना मुमकिन नहीं हो पाता। ऐसे में अगर EMI लगातार मिस होती रहे, तो बैंक लोनधारक को डिफॉल्टर घोषित कर देता है। मामला गंभीर होने पर गिरवी रखी प्रॉपर्टी की नीलामी (Property Auction) तक की नौबत आ जाती है।
लेकिन ये प्रक्रिया एक झटके में नहीं होती। नीलामी से पहले बैंक कई स्टेप्स फॉलो करता है और इस दौरान लोनधारक के पास अपने हक के इस्तेमाल के मौके भी रहते हैं। आइए जानते हैं कि EMI मिस होने के बाद बैंक क्या-क्या करता है और आप कब-क्या कदम उठा सकते हैं।
EMI मिस होते ही क्या होता है?
अगर आपने पहली बार लोन की EMI मिस की है, तो बैंक तुरंत कोई सख्त एक्शन नहीं लेता। लेकिन आपकी फाइनेंशियल हिस्ट्री पर निगरानी शुरू हो जाती है। अगर लगातार दो किस्तें नहीं भरी जातीं, तो बैंक की तरफ से रिमाइंडर नोटिस भेजा जाता है।
इसके बाद अगर तीसरी EMI भी समय पर नहीं आती, तो बैंक लीगल नोटिस भेजता है। ये एक तरह की कानूनी चेतावनी होती है कि अगर अब भी भुगतान नहीं किया गया, तो अगला कदम सीधा कड़ा हो सकता है।
लगातार पांचवीं EMI चूकते ही खाता बनता है NPA
अगर लगातार तीसरी, चौथी और पांचवीं किस्त भी जमा नहीं होती, तो बैंक उस लोन अकाउंट को NPA (Non-Performing Asset) घोषित कर देता है। यहीं से डिफॉल्ट की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यानी अब बैंक को अधिकार मिल जाता है कि वो अपने लोन की रिकवरी के लिए आगे की कानूनी कार्रवाई शुरू करे।
NPA बनने के बाद भी तुरंत नहीं होती नीलामी
NPA घोषित होने के बाद भी बैंक तुरंत प्रॉपर्टी नीलाम नहीं करता। इसके लिए एक तय प्रक्रिया फॉलो होती है। लोन खाते को तीन कैटेगरी में बांटा जाता है:
- सब-स्टैंडर्ड एसेट्स (Substandard Assets): जब अकाउंट 12 महीने तक NPA बना रहता है।
- डाउटफुल एसेट्स (Doubtful Assets): जब NPA की अवधि 1 साल से ज्यादा हो जाती है।
- लॉस एसेट्स (Loss Assets): जब बैंक मान लेता है कि लोन की रिकवरी अब संभव नहीं है।
नीलामी की कार्रवाई तब ही शुरू होती है जब अकाउंट लॉस एसेट्स की कैटेगरी में पहुंच जाता है।
नीलामी से पहले क्या-क्या जरूरी है?
जब बैंक प्रॉपर्टी को नीलाम करने का फैसला करता है, तो उसे एक पब्लिक नोटिस (Auction Notice) जारी करना होता है। ये नोटिस आमतौर पर अखबारों और बैंक की वेबसाइट पर पब्लिश किया जाता है। इसमें ये जानकारियां होती हैं:
- प्रॉपर्टी की डिटेल और वैल्यूएशन
- रिजर्व प्राइस (Reserve Price)
- नीलामी की तारीख और टाइम
इस प्रक्रिया का मकसद नीलामी को पूरी तरह पारदर्शी रखना होता है।
नीलामी को कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार
अगर लोनधारक को लगता है कि बैंक ने प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन जानबूझकर कम दिखाया है या नीलामी प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी है, तो वह कोर्ट में इसे चैलेंज कर सकता है। अगर कोर्ट को दलील सही लगती है, तो नीलामी को रोका या टाला जा सकता है।
नीलामी के दौरान किन बातों का रखें ध्यान?
अगर नीलामी को रोकना मुमकिन न हो, तो लोनधारक को चाहिए कि वो नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखे। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर प्रॉपर्टी की बोली लोन अमाउंट से ज्यादा लगती है, तो अतिरिक्त रकम लोनधारक को लौटाना बैंक की जिम्मेदारी होती है। ये उसका कानूनी अधिकार (Legal Right) है।
क्या करें जिससे प्रॉपर्टी नीलामी से बच सके?
- EMI मिस होने पर तुरंत बैंक से संपर्क करें और री-स्ट्रक्चरिंग (Restructuring) या समय बढ़ाने की अपील करें।
- लीगल नोटिस मिलने पर बिना देर किए किसी अच्छे वकील से सलाह लें।
- अगर खाता NPA हो चुका है, तो प्रॉपर्टी का दोबारा वैल्यूएशन (Revaluation) कराने की कोशिश करें।
- सबसे बेहतर तरीका यही है कि EMI को समय पर भरने की कोशिश की जाए।